रूप सुनहरा देख हुआ यह पागल मन मेरा
कभी धरा कभी अम्बर में ढूंढें
यह पागल मन मेरा I

नित नया नूतन प्रकाश तुम दिखाती हो,
तुम्हें अंधेरों में ढूंढें यह पागल मन मेरा I

बिना देखें चैन ना आएं
रात ना आएं रैना
कस्तूरी मृग बन
वन वन ढूंढें है यह पागल मन मेरा II

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