आजाद पंछी की तरह उड़ती रहो
इस नील गगन में
शर्माओ बलखाओ
पास आओ
अटखेलियाँ दिखाकर
मन हर्षाओ
मधुर कंठ से
अपने जीवन की
सारी खुशियां
तुम बरसाओ
पावन कर दो मन और ह्रदय को,
जो जीवन की राह न जाने
अपने स्वप्निल रूप से
मन में प्रेम की ज्योति जलाओ
आओ एक बार आओ
सुने धरा की इस बग़िया पर
अपनी ध्वनि से फिर
हरियाली आने का
बिगुल बजाओ
और चुपके से
फिर उड़ जाओ
इस नील गगन में II

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