🌅 नई सुबह

रात की चादर हटी तो,
सपनों की किरनें मुस्काईं।
थके हुए मन की गहराइयों में,
उम्मीदों ने फिर धुन गुनगुनाईं।

पेड़ों ने झूला झुलाया,
हवा ने गीत सुनाया,
सूरज की पहली किरण ने,
हर दुख का रंग मिटाया।

कल की परछाइयाँ थीं भारी,
पर आज का दिन सुनहरा है,
हर गिरावट सिखाती यही —
उठना ही असल बसेरा है।

चल पड़ो अब नए रस्तों पर,
भरोसा रखो अपने मन पर,
जो ठहर गए वो पत्थर हैं,
जो बढ़े वही सागर हैं।

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