मंगल बेला आई अद्भुत, शुभ से भरी पवन बहती,

अयोध्या – मिथिला संग झूमे, हर दिशा सजे, हर आँख कहती।

जनकपुरी में दीप जले थे, स्वर्ण किरण-सा सिंगार हुआ,
राम–सीता के पावन मिलन से, जग में प्रेम अवतार हुआ।

राम खड़े विनय की मुद्रा में, लोचन झुके आदर के संग,
सीता माता हाथ जोड़े, झूम उठे मंदिर-वन-तरंग।

वरमाला जब राम पहने, रूप स्वयं मुस्काया था,
लक्ष्मण–भरत–शत्रुघ्न संग, सुख का सागर आया था।

धनुष-बाण के वीर कहाए, पर प्रेम की अनुभूति अनोखी,
सीता संग थे राम पूर्ण, जीवन कथा हुई रमणीय झांकी।

फूल झरे, गूँजे शंख–घंटे, देवों ने किया जय-जयकार,
राम–सीता का यह पावन मिलन, युगों-युगों तक रहे साकार।

जय सिया राम!

कोई टिप्पणी नहीं