“खामोशियों का इकरार”

कुछ बातें लफ़्ज़ों में कही नहीं जातीं,
कुछ दर्द आवाज़ मांगते नहीं।
दिल की गलियों में चुपचाप रहते हैं,
और आँखें उन्हें हर रात पढ़ लेती हैं।

हम हँसते रहे दुनिया के सामने,
पर भीतर कोई रोज़ टूटता रहा।
जिसे अपना समझा था उम्र भर,
वही सबसे ज़्यादा छूटता रहा।

कभी जो साथ था साँसों की तरह,
आज याद बनकर चुभ जाता है।
उसकी एक झलक ख़्वाबों में भी,
नींद से पहले दिल हिला जाता है।

मगर अजीब है दिल की फ़ितरत भी,
टूटकर भी उम्मीद पाल लेता है।
जिसे खोकर सब कुछ हार गया,
उसी में फिर जीने का सवाल लेता है।

कभी तो वो सुबह आएगी ज़रूर,
जब ये खामोशी गीत बन जाएगी।
जो आज दर्द है सीने में दफ़न,
कल वही सबसे गहरी सीख बन जाएगी।

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