“लिंक” की तलाश

हर मैसेज में पहला सवाल,
“भाई MMS का लिंक दे डाल।”
न किताब से न ज्ञान से नाता,
बस उँगली स्क्रॉल, दिमाग़ खाली थैला।

न शर्म की सीमा, न सोच का पहरा,
व्हाट्सएप बना है इनका सवेरा।
खुद की ज़िंदगी सूनी पड़ी है,
पर दूसरों की झाँकने की बड़ी जल्दी है।

माँगते हैं लिंक, जैसे हक़ हो कोई,
मेहनत, हुनर—इनसे बने ना कोई।
जो देख लिया, वही सच मान बैठे,
दो मिनट के मज़े में संस्कार बेच बैठे।

नज़रें नीचे, सोच भी वैसी,
फिर कहते हैं—“दुनिया कैसी!”
अरे दुनिया नहीं बदली दोस्त,
बस तुम्हारी स्क्रीन गंदी हो बैठी।

कभी किताब का लिंक माँग के देखो,
किसी सपने का पिंक माँग के देखो।
शायद तब पता चले धीरे-धीरे,
ज़िंदगी MMS से कहीं ज़्यादा गहरी।

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