“ख़ामोशियों का शोर”

कुछ बातें शब्दों में नहीं ढलती,
वो आँखों की नमी में बह जाती हैं।
कुछ एहसास आवाज़ नहीं मांगते,
वो दिल की धड़कन में कहे जाते हैं।

हम हँसते हैं दुनिया के मेले में,
और तन्हाई घर तक छोड़ आती है।
हर चेहरा मुकम्मल लगता है बाहर से,
अंदर कोई कहानी अधूरी रह जाती है।

वक़्त सब सिखा देता है धीरे-धीरे,
पर कुछ सबक़ रूह तक चुभ जाते हैं।
जो अपने थे, वो याद बन जाते हैं,
और यादें ही फिर अपना घर बन जाती हैं।

मैं आज भी खुद से यही पूछता हूँ,
कि खोया क्या था, या पाया क्या मैंने।
बस इतना जान पाया हूँ आख़िर में,
कि जो सच्चा था… वही निभाया मैंने।

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