तुम्हारी यादों का मौसम आज फिर बरस पड़ा,
दिल के आँगन में खामोशी का गुलाब खिल पड़ा।

रात भर जागकर चाँद से बस इतना पूछा मैंने—
कब लौटेगी वो, जो दिल में धड़कन बनकर घुल पड़ी?

तेरी राहों में बिछे थे जो अरमानों के दीप,
अब धुएँ की तरह उड़ते हैं, और मैं बस देखता रह गया।

तेरे बिना हर ख़ुशी में खालीपन का स्वाद है,
जैसे अधूरी दुआ हो, या बिछड़ा हुआ कोई ताग़ है।

वक़्त भी अजीब है… ठहरता नहीं, कटता नहीं,
बस तेरी यादों का सफ़र है, जो रुकता भी नहीं।

आज फिर मैंने दिल से तेरी आहट महसूस की,
पर समझ आया—
विरह में आवाज़ें भी अक्सर धोखा दे दिया करती हैं।

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